- Mohit Laad
दो चिलमन, एक दरवाज़ा...
कौन है वो जो मुझे जकड़े हुए हैं
ज़हन में ही है मेरे शायद
जो मुझे पकड़े हुए हैं...
बाहरी पिंजरा है या कोई दुश्मन मेरे अन्दर लगता है
ख़ैर, मुझे तो यहा का यही सिकंदर लगता है...
अभी तो आँख लगी थी मेरी
न जाने क्यूँ इन चिलमनो को खोला गया
अभी तो इश्क़ चला ही था मेरा इस दुनिया से
न जाने क्यूँ इन रास्तों को जोड़ा गया...
कौन है वो पहरेदार?
जो इस पिंजरे की रखवाली करता है
"जाकर बुलाओ उस कमबख्त को!"
जो इस दुनिया पर मनमानी करता है...
कैसी दुनिया है ये...
न यहा अच्छाई का सूर्य चमकता है
और ना ही उस पर ग्रहण का प्याला झलकता है
न यहा मंज़िल हैं
और ना कोई रास्ता नज़र आता है
लोग हैं तो ज़रूर मेरे पास मगर
इनका तो सिर्फ खुद से ही वास्ता नज़र आता है
न रिश्तों की सुगंध आती है
न इन्हें किसी अपने की याद आती है
जलते दिलों की दुर्गंध आती है
जो सिर्फ टूटे दिलों का गीत गाती है...
अपनी इन दो चिलमनो से जब बाहरी दुनिया में झांकता हूँ
तो आश्चर्यचकित हो जाता हूँ
अरे! ये मै क्या पाता हूँ...
उस दुनिया में ना कोई दरवाज़ा
ना कोई पहरेदार है
पराए अपने है
दुश्मन भी वफादार है...
इस पिंजरे को खोलो
इस दुनिया से बाहर निकालो मुझे
बहुत कर लीं अंधेरे से दोस्ती
अब उजाले से मिलाओ मुझे
ये मायावी जाल हैं
इस से मुझे रिहा करो
यहा कोई न मेरा
इस खेल को अब फ़ना करो
मुझे अपनी दुनिया में जाना है
बहुत हुआ, अब मुझे जाने दो
एक ताला नज़र आता है
इस ताले की चाबी दो
वरना था जो इसका राज़ वो राज़ ही रह जाएगा
फिर एक नया 'मोहित' आएगा, नई दास्तान सुना कर जाएगा
आखिर में वो भी चुप रह जाएगा
और जो राज़ खामोशी में था,
वो खामोशी में ही रह जाएगा ||