- Deepshikha Dadhwal
तुम्हारी यादें
दिन में हिम्मत होती नहीं तुम्हारी यादों की,
मेरी रोशनी को वो बेरंग कर सके
पर ढलती शामों के साथ जब हलचल मंद हो जाती है,
तब सूनेपन की आँधी बेहिसाब आती है
और सुबह तक सब तबाह कर जाती है
उठती मैं फिर खौफ़ में हूँ
और दोपहर तक ख़ामोश रह जाती हूँ
पर ज़ोर देखो मेरी होश का कि
दिन में तो हिम्मत नहीं होती तुम्हारी यादों की,
ज़माने को इस बर्बादी की भनक लग सके