- Meenal Agarwal
मायका
रोज़ की इस दिनचर्या में,
खुद को भी एक जगह दूँ।
सहम सी गयी जो खुशियाँ मेरी,
उन्हें फिर मुस्कुराने की वजह दूँ।
परिवार की जिम्मेदारियों को,
बस थोड़ी सी ढील थमा दूँ,
कैद रह गए जो सपने मेरे,
उन्हें फिर खुले आसमाँ की हवा दूँ।
समाज के रीत-रिवाज़ों को मै,
बस थोड़ी देर के लिए भुला दूँ।
अलमारी में बंद है जो गुड़िया मेरी,
उसे फिर दुल्हन सा सजा दूँ।
नए रिश्तों की राहों को,
बस पुरानी गलियों से मिला लूँ।
रूठ गयी जो सखियाँ मेरी,
उन्हें फिर गले लगा अपना बना लूँ।
पति के दिए ऐशो-आराम को,
बस मायके का सुख दिखा दूँ।
फ़ीकी पड़ी है जो यादें मेरी,
उन्हें फिर बचपन का स्वाद चखा दूँ।